बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - ४ :
विभक्त्यर्थ प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी)
विभक्त्यर्थ
कारक - कारक का अर्थ है - क्रिया करोति निर्वर्तयति इति कारकम् - अर्थात् जो क्रिया को सिद्ध करे या निष्पादन करे वह कारक है। भाव यह है कि जिनसे किसी-न-किसी रूप में क्रिया की निष्पत्ति होती है वह कारक कहलाता है। जैसे- 'रामः पठति' में राम के द्वारा पठन क्रिया की निष्पत्ति हो रही है। अतः राम कर्त्ता कारक है। प्रायः वैयाकरण छः कारक मानते हैं, कर्ता, कर्म, कारण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण। सम्बन्ध को कारक नहीं मानते, क्योंकि उसका क्रिया से सम्बन्ध नहीं है।
कर्त्ता कारक :
प्रथमा विभक्ति - सूत्र व्याख्या एवं सिद्धि
१. प्रतिपदिकार्थलिङ्गपरिमाण वचनमात्रे प्रथमा।
नियतोपस्थितिकः प्रातिपदिकार्थः। मात्रशब्दस्य प्रत्येक योगः। प्रातिपदिकार्थमात्रे लिङ्गमात्राधिक्ये संख्यामात्रे च प्रथमा स्यात्। उच्चैः, नीचैः कृष्णः श्रीः ज्ञानम्। अलिङ्गा नियतलिङ्गाश्च प्रातिपदिकार्थमात्र इत्यस्योदाहरणम्। अनियतलिङ्गास्तु लिंगमात्राधिकस्य। तटः तटी तटम्। परिमाणमात्रे द्रोणो ब्रीहि: द्रोणरूपंमत्परिमाणं तत्परिच्छिन्नो ब्रीहिरित्यर्थः।
अर्थ - प्रातिपदिकार्थ मात्र, लिङ्गा मात्र, परिमाण मात्र तथा वचन मात्र में प्रथमा विभक्ति होती है।
प्रातिपदिकार्थ पाँच प्रकार का होता है - जाति (सत्ता), द्रव्य (व्यक्ति), लिङ्ग, संख्या और कारक। किन्तु प्रकृत सूत्र में प्रातिपदिकार्थ से पञ्चक के स्थान पर केवल द्विक-जाति और व्यक्ति का ही ग्रहण होता है, क्योंकि सूत्र में लिङ्ग एवं संख्या (वचन) का पृथक् निर्देश किया गया है। अतएव प्रातिपदिकार्थ का आशय है - नियत रूप से उपस्थित होने वाला पदार्थ अर्थात् प्रातिपदिक के उच्चारण से जो अर्थ नियमतः उपस्थित होता है उसे प्रातिपदिकार्थ कहते हैं। प्रातिपदिक के उच्चारण से जाति और व्यक्ति ही नियमतः उपस्थित होते हैं लिङ्ग संख्या और कारक नहीं।
(क) प्रातिपदिकार्थ मात्र में - जिस शब्द के उच्चारण करने पर जिस अर्थ की उपस्थिति होती है वह प्रातिपदिकार्थ है। वस्तुतः प्रातिपदिकार्थ का तात्पर्य है - वाच्यार्थ या संकेतितार्थ। प्रातिपदिकार्थ में प्रथा का उदाहरण उच्चैः, नीचैः, कृष्णः श्री, ज्ञानम्। उच्चैः नीचैः अत्यय हैं। कृष्णः पु.लि. श्री : स्त्री लि. ज्ञानम् न.पु. हैं। अर्थात् इनका नियत लिंग है ये एक ही लिंग में प्रयोग किए जाते हैं।
(ख) लिङ्गमात्र में - किसी भी लिङ्ग की जहाँ प्रतीति हो वहाँ लिङ्ग मात्र है, क्योंकि वहाँ अनियत लिङ्ग हैं अर्थात् लिङ्ग निश्चित नहीं है अर्थात् जहाँ पर शब्दों का कभी पु. लि. कभी स्त्री लि. तथा कभी न. पु. में प्रयोग किया जाता है। जैसे- 'तट' शब्द है। यह तटः तटी, तटम् - इस प्रकार तीनों लिङ्गों में प्रयोग किया जाता है। अतः यहाँ भी प्रथमा विभक्ति होती है।
(ग) परिमाण मात्र में - द्रोणो ब्रीहिः यहाँ द्रोण शब्द से परिमाण अर्थ में प्रथमा विभक्ति हुई है। द्रोण परिमाण विशेष है और ब्रीहि व्यक्ति (द्रव्य)। अतः धर्म- धर्मी भाव होने के कारण अभेद्रान्वय न होने से द्रोण परिमाण और ब्रीहि व्यक्ति में परिच्छेद परिच्छेदक भाव अन्वय उत्पन्न होता है। यहाँ द्रोण का अर्थ है द्रोण परिमाण - विशेष और प्रथमा विभक्ति (प्रत्यय) का अर्थ है परिमाण- सामान्य। अतः इनका 'द्रोण रूप परिमाण' यह अभेदान्वय होता है। द्रोण अभेद संसर्ग से परिमाण- सामान्य का विशेषण है और परिमाण सामान्य परिच्छेद्य-परिच्छेदक भाव से ब्रीहि का विशेषण है।
(घ) वचन मात्र में - वचन का अर्थ है संख्या। संख्यावाचक शब्द से संख्या अर्थ में प्रथमा विभक्ति होती है। यथा - एकः द्वौ बहवः। यहाँ एकहि इत्यादि संख्यावाची शब्दों से ही संख्या का बोध हो जाता है। अतः संख्या अर्थ में विभक्ति प्राप्त नहीं होती। किन्तु अपदं व प्रपुञ्जीत (बिना पद बने शब्द का प्रयोग नहीं होना चाहिए।) नियम के अनुसार केवल प्रातिपदिक (एक, द्वि, आदि) का प्रयोग नहीं हो सकता है। अतः प्रकृत सूत्र से प्रथमा विभक्ति का विधान किया गया है। इस प्रकार यहाँ प्रथमा विभक्ति के द्वारा प्रातिपदिकार्थ का अनुवाद होता है और उनमें परस्पर अभेद अन्वय हो जाता है।
२. सम्बोधने च
इह प्रथमा स्यात्। हे राम।
सम्बोधन अर्थ में भी प्रातिपदिक से प्रथमा विभक्ति (सु और जस्) होती हैं। यथा, हे राम !
कारके
इत्यधिकृत्य।
यह अधिकार सूत्र है। इसका अधिकार 'तत्प्रयोजको हेतुश्च' तक जाता है। कारक शब्द के अपादानादि का विशेषण होने के कारण प्रकृत सूत्र संज्ञा सूत्र भी है। सूत्र सात प्रकार के होते हैं अधिकार संज्ञा, परिभाषा, विधि, निषेध, नियम और अतिदेश।
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- प्रश्न- निम्नलिखित क्रियापदों की सूत्र निर्देशपूर्वक सिद्धिकीजिये।
- १. भू धातु
- २. पा धातु - (पीना) परस्मैपद
- ३. गम् (जाना) परस्मैपद
- ४. कृ
- (ख) सूत्रों की उदाहरण सहित व्याख्या (भ्वादिगणः)
- प्रश्न- निम्नलिखित की रूपसिद्धि प्रक्रिया कीजिये।
- प्रश्न- निम्नलिखित प्रयोगों की सूत्रानुसार प्रत्यय सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित नियम निर्देश पूर्वक तद्धित प्रत्यय लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित का सूत्र निर्देश पूर्वक प्रत्यय लिखिए।
- प्रश्न- भिवदेलिमाः सूत्रनिर्देशपूर्वक सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- स्तुत्यः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
- प्रश्न- साहदेवः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
- कर्त्ता कारक : प्रथमा विभक्ति - सूत्र व्याख्या एवं सिद्धि
- कर्म कारक : द्वितीया विभक्ति
- करणः कारकः तृतीया विभक्ति
- सम्प्रदान कारकः चतुर्थी विभक्तिः
- अपादानकारकः पञ्चमी विभक्ति
- सम्बन्धकारकः षष्ठी विभक्ति
- अधिकरणकारक : सप्तमी विभक्ति
- प्रश्न- समास शब्द का अर्थ एवं इनके भेद बताइए।
- प्रश्न- अथ समास और अव्ययीभाव समास की सिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- द्वितीया विभक्ति (कर्म कारक) पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- द्वन्द्व समास की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- अधिकरण कारक कितने प्रकार का होता है?
- प्रश्न- बहुव्रीहि समास की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- "अनेक मन्य पदार्थे" सूत्र की व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए।
- प्रश्न- तत्पुरुष समास की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- केवल समास किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अव्ययीभाव समास का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- तत्पुरुष समास की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कर्मधारय समास लक्षण-उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- द्विगु समास किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं?
- प्रश्न- द्वन्द्व समास किसे कहते हैं?
- प्रश्न- समास में समस्त पद किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रथमा निर्दिष्टं समास उपर्सजनम् सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- तत्पुरुष समास के कितने भेद हैं?
- प्रश्न- अव्ययी भाव समास कितने अर्थों में होता है?
- प्रश्न- समुच्चय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'अन्वाचय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइये।
- प्रश्न- इतरेतर द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाहार द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरणपूर्वक समझाइये |
- प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
- प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति के प्रत्यक्ष मार्ग से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा की परिभाषा देते हुए उसके व्यापक एवं संकुचित रूपों पर विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- भाषा-विज्ञान की उपयोगिता एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भाषा-विज्ञान के क्षेत्र का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भाषाओं के आकृतिमूलक वर्गीकरण का आधार क्या है? इस सिद्धान्त के अनुसार भाषाएँ जिन वर्गों में विभक्त की आती हैं उनकी समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ कौन-कौन सी हैं? उनकी प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप मेंउल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय आर्य भाषाओं पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा देते हुए उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भाषा के आकृतिमूलक वर्गीकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अयोगात्मक भाषाओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- भाषा और बोली में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- मानव जीवन में भाषा के स्थान का निर्धारण कीजिए।
- प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संस्कृत भाषा के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- संस्कृत साहित्य के इतिहास के उद्देश्य व इसकी समकालीन प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन की मुख्य दिशाओं और प्रकारों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के प्रमुख कारणों का उल्लेख करते हुए किसी एक का ध्वनि नियम को सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भाषा परिवर्तन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैदिक भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक संस्कृत पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- संस्कृत भाषा के स्वरूप के लोक व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के कारणों का वर्णन कीजिए।